বাংলায় পড়ুন–
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हिंदी में पढ़ें-
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বাংলালিপি–
স্বায়ত্তমেকান্তগুণং বিধাত্রা বিনির্মিতং ছাদনমজ্ঞতায়াঃ।
বিশেষতঃ সর্ববিদাং সমাজে বিভূষণং মৌনমপণ্ডিতানাম্॥
(নীতিশতকম্- ৭)
ভূমিকা– আলোচ্য
শ্লোকটি কবি ভর্তৃহরি রচিত নীতিশতক থেকে নেওয়া হয়েছে।
অন্বয়ার্থ– বিধাত্রা = সৃষ্টিকর্তা কর্তৃক, অজ্ঞতায়াঃ = বিদ্যাহীনতার, স্বায়ত্তম্ = নিজের দ্বারা নিয়ন্ত্রিত, একান্তগুণং = এক অমোঘগুণ, ছাদনম্ = আবরণ রূপে, বিনির্মিতং = নির্মিত হয়েছে, বিশেষতঃ = বিশেষ করে, সর্ববিদাং = পন্ডিতবর্গের, সমাজে = সভায়, অপণ্ডিতানাং = শাস্ত্রজ্ঞানশূন্য মূর্খদের, মৌনম্= মৌনতা (হল) বিভূষণং = বিশেষ অলঙ্কার।
ভাবার্থ– “অজ্ঞঃ সুখমারাধ্যঃ” ইত্যাদি শ্লোক থেকে পণ্ডিতাভিমানী
ব্যক্তিবর্গের নিন্দায় মুখর হয়েছেন সমাজ দার্শনিক কবি ভর্তৃহরি। আলোচ্য
শ্লোকটিতেও কবি নিন্দার তালিকাকে দীর্ঘায়িত করেছেন। বিদ্বানদের ভূষণ বাগ্মিতা আর
মূর্খদের ভূষণ হল মৌনতা এই ভাবটিই আলোচ্য শ্লোকে ব্যক্ত হয়েছে। এই শ্লোকের অনুরূপ
উক্তি আমরা চাণক্য শ্লোকে দেখতে পাই–
“দূরতঃ শোভতে মূর্খঃ
লম্বমানঃ পটাবৃতঃ।
তাবচ্চ শোভতে মূর্খঃ যাবৎ কিঞ্চিন্ন
ভাষতে॥”
আলোচ্য শ্লোকের দ্বারা কবি নিন্দার
পরাকাষ্ঠা দেখিয়েছেন। এইরকম ভাব এর বিস্তার আমরা ইংরেজি প্রবাদেও দেখতে পাই– “Silence is a virtue in
those who are deficient in understanding”.
ব্যাকরণবিমর্শ–
১. স্বায়ত্তম্– স্বস্য আয়ত্তম্ ইতি স্বায়ত্তম্– ষষ্ঠীতৎপুরুষ।
২. অপণ্ডিতানাম্– ন পণ্ডিতঃ ইতি অপণ্ডিতঃ, তেষাম্ অপণ্ডিতানাম্ – নঞ্তৎপুরুুষ।
ছন্দ ও অলঙ্কার– উপজাতি ছন্দ। স্বভাবোক্তি অলঙ্কার।
हिंदी में पढ़ें-
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥ (नीतिशतकम्- ७)
भूमिका– विचाराधीन कविता भर्तृहरि द्वारा लिखे गए नीतिशतक से ली गई है।
अन्वयार्थ– विधात्रा = सृष्टिकर्ता द्वारा, अज्ञतायाः = मूर्खता के लिए, स्वायत्तम् = आत्म-नियंत्रित, एकान्तगुणं = अचूक, छादनम् = आवरण
के रूप में, विनिर्मितं = बनाया
गया है, विशेषतः = विशेष रूप
से, सर्वविदां = विद्वानों
की, समाजे = बैठकों में,
अपण्डितानां = मूर्खों के लिए,
मौनम् = मौन विभूषणं = अलङ्काररूप है।
भावार्थ– “अज्ञः
सुखमाराध्यः” इत्यादि श्लोक से जीवनदार्शनिक
कवि भर्तृहरि पंडिताभिमानी लोगों की निंदा करते हैं। विचाराधीन कविता में, कवि ने निंदा की सूची को और लंबा कर दिया है। विद्वानों का भूषण वाक्पटुता होती है और मूर्खों का भूषण मौनता होती है। इस श्लोक का एक समान कथन चाणक्य पद्य में
मिलता है–
“दूरतः शोभते मूर्खः लम्बमानः पटावृतः।
तावच्च शोभते मूर्खः यावत् किञ्चिन्न भाषते॥”
प्रस्तुत कविता द्वारा कवि ने निन्दा की पराकाष्ठा का
प्रदर्शन किया है। हम इस विचार का प्रसार अंग्रेजी कहावतों में भी देखते हैं– “Silence is a
virtue in those who are deficient in understanding”.
व्याकरणविमर्श–
१. स्वायत्तम्– स्वस्य आयत्तम् इति स्वायत्तम् (षष्ठीतत्पुरुष)।
२. अपण्डितानाम्– न पण्डितः इति अपण्डितः, तेषाम् अपण्डितानाम् (नञ्तत्पुरुष)।
छन्द तथा अलङ्कार– उपजाति
वृत्त। स्वभावोक्ति अलङ्कार।
संस्कृतेन पठतु
स्वायत्तमेकान्तगुणं विधात्रा विनिर्मितं छादनमज्ञतायाः।
विशेषतः सर्वविदां समाजे विभूषणं मौनमपण्डितानाम्॥ (नीतिशतकम्- ७)
भूमिका– श्लोकोऽयं
कविना भर्तृहरिणा विरचिते नीतिशतकाख्ये ग्रन्थे विद्यते।
अन्वयार्थः– विधात्रा = ब्रह्मणा, अज्ञतायाः = मूर्खतायाः, स्वायत्तम् = आत्मायत्तम्, एकान्तगुणं = स्वीयम् अमोघगुणं, छादनम् = आवरकं, विनिर्मितं = रचितं, विशेषतः = विशिष्य, सर्वविदां = विदुषां, समाजे = सभायाम्, अपण्डितानां = मूर्खाणां, मौनम् = तूष्णीम्भावः, विभूषणं = अलङ्कारविशेषः इति अन्वयार्थः।
भावार्थः– “अज्ञः सुखमाराध्यः” इत्यारभ्य पण्डितम्मन्यानां जनानां
निन्दायां रतः समाजदर्शी कविः भर्तृहरिः अधुनापि प्रस्तुतश्लोकेन तदेव अनुवर्तयति। विदुषां भूषणं वाग्मिता, विद्याहीनानां भूषणं मौनता इत्ययं भावः प्रकृतश्लोकेन प्रकटितः। एतादृशो भावः चाणक्यश्लोकेऽपि परिलक्ष्यते –
“दूरतः शोभते मूर्खः लम्बमानः
पटावृतः।
तावच्च शोभते मूर्खः यावत् किञ्चिन्न भाषते॥” इति।
श्लोकेनानेन निन्दायाः पराकाष्ठा एव कविना प्रदर्शिता।
एतादृशो भावः आङ्गले प्रवादे अपि दृश्यते – “Silence is a virtue in those who are deficient in understanding” इति।
व्याकरणविमर्शः–
१. स्वायत्तम्– स्वस्य आयत्तम् इति स्वायत्तम् इति
षष्ठीतत्पुरुषः।
२. अपण्डितानाम्– न पण्डितः इति अपण्डितः, तेषाम्
अपण्डितानाम् इति नञ्तत्पुरुषः।
छन्दः अलङ्कारश्च– उपजातिः वृत्तम्। स्वभावोक्तिरलङ्कारः।
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বাংলালিপি–
স্বায়ত্তমেকান্তগুণং বিধাত্রা বিনির্মিতং ছাদনমজ্ঞতায়াঃ।
বিশেষতঃ সর্ববিদাং সমাজে বিভূষণং মৌনমপণ্ডিতানাম্॥
(নীতিশতকম্- ৭)
ভূমিকা– শ্লোকোঽয়ং কবিনা ভর্তৃহরিণা বিরচিতে
নীতিশতকাখ্যে গ্রন্থে বিদ্যতে।
অন্বয়ার্থঃ– বিধাত্রা = ব্রহ্মণা, অজ্ঞতায়াঃ = মূর্খতায়াঃ, স্বায়ত্তম্ = আত্মায়ত্তম্, একান্তগুণং = স্বীয়ম্
অমোঘগুণং, ছাদনম্
= আবরকং, বিনির্মিতং
= রচিতং, বিশেষতঃ
= বিশিষ্য, সর্ববিদাং
= বিদুষাং, সমাজে
= সভায়াম্, অপণ্ডিতানাং
= মূর্খাণাং, মৌনম্ = তূষ্ণীম্ভাবঃ, বিভূষণং
= অলঙ্কারবিশেষঃ ইতি অন্বয়ার্থঃ।
ভাবার্থঃ– “অজ্ঞঃ সুখমারাধ্যঃ” ইত্যারভ্য
পণ্ডিতম্মন্যানাং জনানাং নিন্দায়াং রতঃ সমাজদর্শী কবিঃ ভর্তৃহরিঃ অধুনাপি
প্রস্তুতশ্লোকেন তদেব অনুবর্তয়তি। এতাদৃশো ভাবঃ চাণক্যশ্লোকেঽপি পরিলক্ষ্যতে –
“দূরতঃ শোভতে মূর্খঃ লম্বমানঃ পটাবৃতঃ।
তাবচ্চ শোভতে মূর্খঃ যাবৎ কিঞ্চিন্ন ভাষতে॥” ইতি।
শ্লোকেনানেন নিন্দায়াঃ পরাকাষ্ঠা এব কবিনা প্রদর্শিতা। এতাদৃশো ভাবঃ
আঙ্গলে প্রবাদে অপি দৃশ্যতে – “Silence
is a virtue in those who are deficient in understanding” ইতি।
ব্যাকরণবিমর্শঃ–
১. স্বায়ত্তম্– স্বস্য
আয়ত্তম্ ইতি স্বায়ত্তম্ ইতি ষষ্ঠীতৎপুরুষঃ।
২. অপণ্ডিতানাম্– ন
পণ্ডিতঃ ইতি অপণ্ডিতঃ, তেষাম্
অপণ্ডিতানাম্ ইতি নঞ্তৎপুরুষঃ।
ছন্দঃ অলঙ্কারশ্চ– উপজাতিঃ বৃত্তম্। স্বভাবোক্তিরলঙ্কারঃ।
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