अम्भोजिनीवननिवासविलासमेव
हंसस्य हन्ति नितरां कुपितो विधाता।
न त्वस्य दुग्धजलभेदविधौ प्रसिद्धां
वैदग्ध्यकीर्तिमपहर्तुमसौ समर्थः॥१८॥
भूमिका– श्लोकोऽयं
कविना भर्तृहरिणा विरचिते नीतिशतकाख्ये ग्रन्थे विद्यते।
अन्वयार्थः– नितराम् = अत्यन्तं, कुपितः = क्रुद्धः, विधाता = ब्रह्मा, हंसस्य = मरालस्य, अम्भोजिनीवननिवासविलासम्
एव = पद्मकानने क्रीडाजनितमानन्दम् एव,
हन्ति = हन्तुं समर्थो भवति, असौ = विधाता, अस्य = हंसस्य, दुग्धजलभेदविधौ = नीरक्षीरविवेके, प्रसिद्धां = बहुश्रुतां, वैदग्ध्यकीर्तिं = निपुणताम्, अपहर्तुं = विनाशयितुं, तु न समर्थः = न शक्तः इति अन्वयार्थः।
भावार्थः– प्रस्तुतश्लोकेन गुणस्य
अविनश्वरत्वं गायति कविः। जन्ममृत्योः कारणं विधाता लीलाकमलवने सञ्चरन्तं हंसं
निहन्तुं समर्थः, परन्तु नीरात् क्षीरस्य पृथकीकरणरूपं हंसगुणं विनाशयितुं न
समर्थः। यतः गुणः अविनश्वरः। गुणस्य माहात्म्यकीर्तनं संस्कृतसाहित्ये भूयशः
दृश्यते – “गुणाः पूजास्थानं गुणिषु” इति। नीतिशास्त्रे यथा – “गुणहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धाः इव किंशुकाः” इति। व्यक्तेः विनाशे अपि अविनश्वरः
गुणः जीवति – “कीर्तिर्यस्य स जीवति” इति। काव्यजनितस्य वैदग्ध्यस्य
अधिकारिणं कविं विधाता हन्तुं समर्थः, न पुनः कवेः कवित्वमिति भावः।
व्याकरणविमर्शः–
१. अम्भोजिनीवननिवासविलासम्– अम्भोजिनीनां वनम् इति
अम्भोजिनीवनम् इति षष्ठीतत्पुरुषः, तत्र निवासः अम्भोजिनीवननिवासः इति
सप्तमीतत्पुरुषः, अम्भोजिनीवननिवासजनितः विलासः इति अम्भोजिनीवननिवासविलासः, तम्
अम्भोजिनीवननिवासविलासम् इति मध्यपदलोपी कर्मधारयः।
२. दुग्धजलभेदविधौ– दुग्धं च जलं च दुग्धजले इति
द्वन्द्वसमासः, तयोः भेदविधिः इति षष्ठीतत्पुरुषः, तस्मिन् दुग्धजलभेदविधौ।
छन्दः अलङ्कारश्च– वसन्ततिलकावृत्तम्। निदर्शनालङ्कारः।
--------------------------------------------------------------
বাংলালিপি–
--------------------------------------------------------------
বাংলালিপি–
অম্ভোজিনীবননিবাসবিলাসমেব
হংসস্য হন্তি নিতরাং কুপিতো বিধাতা।
ন ত্বস্য দুগ্ধজলভেদবিধৌ প্রসিদ্ধাং
বৈদগ্ধ্যকীর্তিমপহর্তুমসৌ সমর্থঃ॥১৮॥
ভূমিকা– শ্লোকোঽয়ং কবিনা ভর্তৃহরিণা
বিরচিতে নীতিশতকাখ্যে গ্রন্থে বিদ্যতে।
অন্বয়ার্থঃ– নিতরাম্
= অত্যন্তং, কুপিতঃ = ক্রুদ্ধঃ, বিধাতা = ব্রহ্মা, হংসস্য = মরালস্য, অম্ভোজিনীবননিবাসবিলাসম্ এব = পদ্মকাননে
ক্রীডাজনিতমানন্দম্ এব, হন্তি
= হন্তুং সমর্থো ভবতি, অসৌ =
বিধাতা, অস্য = হংসস্য, দুগ্ধজলভেদবিধৌ = নীরক্ষীরবিবেকে, প্রসিদ্ধাং = বহুশ্রুতাং, বৈদগ্ধ্যকীর্তিং = নিপুণতাম্, অপহর্তুং = বিনাশয়িতুং, তু ন সমর্থঃ = ন শক্তঃ ইতি অন্বয়ার্থঃ।
ভাবার্থঃ– প্রস্তুতশ্লোকেন গুণস্য অবিনশ্বরত্বং গায়তি কবিঃ।
জন্মমৃত্যোঃ কারণং বিধাতা লীলাকমলবনে সঞ্চরন্তং হংসং নিহন্তুং সমর্থঃ, পরন্তু নীরাৎ ক্ষীরস্য পৃথকীকরণরূপং হংসগুণং
বিনাশয়িতুং ন সমর্থঃ। যতঃ গুণঃ অবিনশ্বরঃ। গুণস্য মাহাত্ম্যকীর্তনং
সংস্কৃতসাহিত্যে ভূয়শঃ দৃশ্যতে – “গুণাঃ পূজাস্থানং
গুণিষু” ইতি। নীতিশাস্ত্রে যথা – “গুণহীনাঃ ন
শোভন্তে নির্গন্ধাঃ ইব কিংশুকাঃ” ইতি। ব্যক্তেঃ বিনাশে অপি অবিনশ্বরঃ গুণঃ জীবতি – “কীর্তির্যস্য স জীবতি” ইতি।
কাব্যজনিতস্য বৈদগ্ধ্যস্য অধিকারিণং কবিং বিধাতা হন্তুং সমর্থঃ, ন পুনঃ কবেঃ কবিত্বমিতি ভাবঃ।
ব্যাকরণবিমর্শঃ–
১. অম্ভোজিনীবননিবাসবিলাসম্– অম্ভোজিনীনাং
বনম্ ইতি অম্ভোজিনীবনম্ ইতি ষষ্ঠীতৎপুরুষঃ, তত্র নিবাসঃ অম্ভোজিনীবননিবাসঃ ইতি সপ্তমীতৎপুরুষঃ, অম্ভোজিনীবননিবাসজনিতঃ বিলাসঃ ইতি
অম্ভোজিনীবননিবাসবিলাসঃ, তম্
অম্ভোজিনীবননিবাসবিলাসম্ ইতি মধ্যপদলোপী কর্মধারয়ঃ।
২. দুগ্ধজলভেদবিধৌ– দুগ্ধং
চ জলং চ দুগ্ধজলে ইতি দ্বন্দ্বসমাসঃ, তয়োঃ ভেদবিধিঃ ইতি ষষ্ঠীতৎপুরুষঃ, তস্মিন্ দুগ্ধজলভেদবিধৌ।
ছন্দঃ অলঙ্কারশ্চ– বসন্ততিলকাবৃত্তম্।
নিদর্শনালঙ্কারঃ।
No comments:
Post a Comment